भारत की महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार वर्ल्ड कप जीतकर ऐसा इतिहास रचा जिसे हर भारतीय गर्व से याद रखेगा। जीत के इस जश्न में हर चेहरा मुस्कुरा रहा था, हर आंख में खुशी के आंसू थे, लेकिन एक खिलाड़ी ऐसी थी जिसकी मुस्कान के पीछे एक अधूरा सपना छिपा था। हम बात कर रहे हैं टीम इंडिया की ओपनर प्रतिका रावल (Pratika Rawal) की — वही खिलाड़ी जिन्होंने अपने दमदार प्रदर्शन से भारत को वर्ल्ड कप फाइनल तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।
आपको बता दें, प्रतिका रावल ने टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया था और वह सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ियों में चौथे नंबर पर रहीं। न्यूजीलैंड के खिलाफ उनका शतक अब भी यूजर के ज़ेहन में ताज़ा है। लेकिन जब पूरी टीम को मेडल दिए गए, तब प्रतिका को एक भी मेडल नहीं मिला। अब सवाल यह है — आखिर क्यों? चलिए, इस पूरी कहानी को जानते हैं, क्योंकि इसमें सिर्फ एक खिलाड़ी की मेहनत नहीं बल्कि जज़्बे और समर्पण की पूरी कहानी छिपी है। इसलिए इसे अंत तक जरूर पढ़ें, क्योंकि इस आर्टिकल में आपको इस पूरे मामले की पूरी जानकारी मिलने वाली है।
प्रतिका रावल की शानदार कहानी
महज 10 महीने पहले इंटरनेशनल डेब्यू करने वाली प्रतिका रावल ने अपनी बल्लेबाज़ी से सबको हैरान कर दिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने सात मैचों में 308 रन बनाए, जिसमें एक शतक और एक अर्धशतक शामिल था। उनका औसत 77.77 रहा, जो इस बात का सबूत है कि वह वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के लिए कितनी जरूरी खिलाड़ी थीं।
उनकी और स्मृति मंधाना (Smriti Mandhana) की जोड़ी ओपनिंग में कमाल कर रही थी। दोनों ने कई बार भारत को मज़बूत शुरुआत दी। न्यूजीलैंड के खिलाफ उनका शतक भारत के लिए करो या मरो मुकाबले में आया था, और उसी पारी की बदौलत भारत सेमीफाइनल में पहुंचा।
चोट ने तोड़ा सपना, फिर भी नहीं टूटा हौसला
आपकी जानकारी के लिए बता दें, बांग्लादेश के खिलाफ आखिरी लीग मैच के दौरान मैदान पर फील्डिंग करते वक्त प्रतिका के पैर में चोट लग गई थी। गेंद रोकने की कोशिश में वह फिसल गईं और उनके टखने में गंभीर चोट आई। डॉक्टरों ने उन्हें कुछ समय तक आराम करने की सलाह दी, जिसके बाद वह सेमीफाइनल और फाइनल से बाहर हो गईं।
टीम मैनेजमेंट ने उनकी जगह शेफाली वर्मा को टीम में शामिल किया। और यहीं से शुरू हुआ वो पल जिसने फैंस (यूजर) को भावुक कर दिया — क्योंकि आईसीसी के नियम के मुताबिक, मेडल केवल उन्हीं खिलाड़ियों को दिया जाता है जो फाइनल के समय स्क्वाड का हिस्सा हों। इसलिए जब मेडल वितरण हुआ, तो शेफाली को मेडल मिला और प्रतिका को नहीं।
फाइनल के बाद का भावनात्मक पल
मीडिया के अनुसार, जब टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप ट्रॉफी जीती, तब स्मृति मंधाना खुद व्हीलचेयर पर बैठी प्रतिका रावल को मैदान पर लेकर आईं। पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उस वक्त हर किसी की आंखें नम थीं।
प्रतिका ने कहा —
“मैं इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मेरे कंधे पर तिरंगा होना मेरे लिए गर्व की बात है। चोटें खेल का हिस्सा हैं, लेकिन मैं बहुत खुश हूं कि मैं इस टीम का हिस्सा हूं। हमने कर दिखाया, और पूरा भारत इस जीत का हकदार है।”
उनकी ये बातें सुनकर हर भारतीय का दिल पिघल गया। सोशल मीडिया पर यूजर ने उन्हें “India’s Real Fighter” कहा।
टूर्नामेंट में प्रतिका का प्रदर्शन
प्रतिका का पूरा टूर्नामेंट शानदार रहा। उन्होंने हर मैच में टीम को मज़बूत शुरुआत दी।
- श्रीलंका के खिलाफ – 37 रन और 1 विकेट
- पाकिस्तान के खिलाफ – 31 रन
- साउथ अफ्रीका के खिलाफ – 37 रन
- ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ – 75 रन
- इंग्लैंड के खिलाफ – 6 रन
- न्यूजीलैंड के खिलाफ – शतक (100+)
इन आंकड़ों से साफ है कि वह पूरे टूर्नामेंट में टीम की रीढ़ थीं। सूत्रों के मुताबिक, कोच और टीम के साथी खिलाड़ी भी मानते हैं कि अगर प्रतिका चोटिल न होतीं, तो फाइनल में उनका प्रदर्शन टीम की जीत को और भी यादगार बना देता।
जीत के बाद टीम ने दिया सम्मान
फाइनल के बाद जब टीम इंडिया ने ट्रॉफी उठाई, तो स्मृति मंधाना ने प्रतिका को मंच पर बुलाया। पूरी टीम ने उन्हें गले लगाया और उनकी मेहनत का सम्मान किया। मिताली राज, झूलन गोस्वामी और अंजुम चोपड़ा जैसे दिग्गजों ने भी प्रतिका की तारीफ की और कहा कि यह जीत उनकी मेहनत के बिना अधूरी थी।
प्रतिका रावल की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो परेशानी का सामना करने के बावजूद हार नहीं मानता। उन्होंने साबित किया कि असली चैंपियन वो नहीं जो मेडल जीतता है, बल्कि वो है जो टीम की जीत में अपना दिल लगाता है। चोट के बावजूद उनका हौसला, टीम के लिए समर्पण और देश के लिए उनका प्यार हर भारतीय को गर्व से भर देता है।